
“सुविधा का युग — जहाँ मूल्य नहीं, मूल्य टैग मायने रखते हैं।”
“सुविधा का युग — जहाँ मूल्य नहीं, मूल्य टैग मायने रखते हैं।”
समाज चिंतन – भाग 5
“”””””””””””””””””””””””””””””””
“सुविधा का युग — जहाँ मूल्य नहीं, मूल्य टैग मायने रखते हैं।”
===============
__ राजेश निगम

आज का समाज तेज़ी से “सुविधा प्रधान” बनता जा रहा है, पर इस दौड़ में इंसानियत कहीं पीछे छूटती जा रही है।
अब अच्छाई की कीमत नहीं, बल्कि उसकी ब्रांडिंग देखी जाती है।
सादगी अब कमजोरी समझी जाती है, और दिखावा “स्टैंडर्ड” बन गया है।
हम रिश्तों को निभाने से ज़्यादा, दिखाने में व्यस्त हैं।
खुशी अब मन की स्थिति नहीं, बल्कि सोशल मीडिया की पोस्ट बन गई है।
किसी के पास समय नहीं, पर सबके पास “ऑनलाइन स्टेटस” है।
अब इंसानियत की पहचान कपड़ों से होती है, और इज़्ज़त फॉलोअर्स से।
यह वही दौर है जहाँ “सच्चा मूल्य” नहीं, बल्कि मूल्य टैग तय करता है कि आप कौन हैं।
भले ही भीतर खालीपन हो, पर अगर बाहर चमक है समाज आपको सफल मान लेता है।
हमने आत्मा की शांति के बजाय, सुविधा की सुरक्षा को प्राथमिकता दे दी है।
कुर्सी, गाड़ी, पद, और प्रॉपर्टी, ये सब हमें ऊँचा दिखाते हैं, पर बड़ा नहीं बनाते।
याद रखिए :
सुविधा शरीर को आराम देती है,
पर संस्कार ही आत्मा को सम्मान देते हैं।
जो व्यक्ति अपनी कीमत “वस्तु” से तय करता है,
वह अपने “मूल्य” को खो देता है।
इसलिए, इस सुविधा के युग में भी अपनी संवेदना को ज़िंदा रखिए,
क्योंकि वही आपको “मानव” बनाए रखेगी।
अगले भाग में पढ़िए :-
“मूल्य विहीन आधुनिकता – जहाँ विकास की चकाचौंध में विवेक खो गया है।”
राजेश निगम, इंदौर
(मध्य प्रदेश, प्रदेश अध्यक्ष)
भारतीय पत्रकार सुरक्षा परिषद



