नई दिल्ली: अखिल भारतीय किसान सभा की केंद्रीय किसान कमिटी के सदस्य तथा बिहार राज्य किसान सभा के उपाध्यक्ष प्रभुराज नारायण राव ने कहा कि डी ए पी खाद पर सब्सिडी बढ़ाने के केंद्रीय सरकार का फैसला किसान पक्षीय नहीं बल्कि कॉर्पोरेट परिवार की मुनाफाखोरी को बढ़ाने के लिए किया गया

डी ए पी पर सब्सिडी बढ़ाना मुनाफाखोरी को बढ़ाना है
आपकी आवाज़ न्यूज, नई दिल्ली: अखिल भारतीय किसान सभा की केंद्रीय किसान कमिटी के सदस्य तथा बिहार राज्य किसान सभा के उपाध्यक्ष प्रभुराज नारायण राव ने कहा कि डी ए पी खाद पर सब्सिडी बढ़ाने के केंद्रीय सरकार का फैसला किसान पक्षीय नहीं बल्कि कॉर्पोरेट परिवार की मुनाफाखोरी को बढ़ाने के लिए किया गया है।उन्होंने कहा कि किसानों द्वारा की जा रही नव उदारवादी नीतियों का विरोध को कम करने की नियत से किया गया है।
उन्होंने कहा कि यूरिया खाद का मूल्य नियंत्रित करने या बढ़ाने के लिए फास्फोरिक और पोटास के मूल्य को मुक्त कर दिया गया है।यूरिया का मूल्य 2012 से ही 266.50 रुपए प्रति बोरी 45 किलो ग्राम है। डी ए पी की का मूल्य 2009–10 में ही 9350 रुपए से बढ़ा कर 2023 में 27000 रुपए पर टन बढ़ा दिया गया।जबकि पिछले 3 साल में खाद की सब्सिडी में 87339 करोड़ रुपए की कटौती की गई है।2022–23 के बजट में 251339 करोड़ रुपए तथा 188894 रुपए 2023–24 के बजट में खाद की सब्सिडी पर कटौती की गई है। जो 24894 करोड़ रुपए की कटौती है।खाद और कच्चे मालों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतों में रुपए में अबतक की सबसे भारी गिरावट है।जो डॉलर के मुकाबले 85.70 रूपये घरेलू मूल्यों पर दबाव बढ़ा दिया है।यह किसानों को तो प्रभावित कर ही रहा है।साथ ही मोदी सरकार की विफलताओं को भी उजागर करता है। पिछले 30 सालों में हमारे घरेलू उत्पादनों निरंतर कमी दिख रही है।हमारा देश अपनी कृषि आवश्यकताओं को को पूरा करने के लिए फास्फोरस और पोटास के आयात पर पूर्ण रुप से निर्भर रहा है। डी ए पी का आयात 70% से अधिक रहा है।जो हमारी अनिश्चितताओं को अति संवेदनशील बना दिया है।वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं द्वारा की जा रही मुनाफाखोर ने अंतर्राष्ट्रीय कीमतों को और ज्यादा बढ़ा दिया है।
यहीं कारण है कि उर्वरक की आवश्यकता के अनुरूप आपूर्ति में भारी कमी आयी है।जबकि मोदी सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि खाद में कोई कमी हुई है।लेकिन जमीनी तौर पर आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि खाद की आपूर्ति में भारी कमी आई है।जबकि किसान विरोधी मोदी सरकार अपनी वर्गीय पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं।