
अनाथ बच्चों को “शिक्षा का अधिकार” में लाएं राज्य : सर्वोच्च न्यायालय।*
अनाथ बच्चों को "शिक्षा का अधिकार" में लाएं राज्य : सर्वोच्च न्यायालय।*
*अनाथ बच्चों को “शिक्षा का अधिकार” में लाएं राज्य : सर्वोच्च न्यायालय।*
अमरदीप नारायण प्रसाद
*बिहार राज्य के कई जिलों में बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था जवाहर ज्योति बाल विकास केन्द्र के सचिव सुरेन्द्र कुमार नें माननीय सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया है।*
सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय : सभी राज्यों को अनाथ बच्चों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) में शामिल करने का निर्देश।
लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ नें एक अत्यंत उदार, संवेदनशील और ऐतिहासिक आदेश पारित किया। पीठ में न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन सम्मिलित थे।
न्यायालय नें सभी राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे अनाथ बच्चों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत लाएं, और यह सुनिश्चित करें कि ऐसे बच्चों को उनके आसपास के स्कूलों में प्रवेश मिले।
यह कार्य संबंधित राज्य सरकारों द्वारा सरकारी आदेश जारी कर के किया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय नें सभी राज्य सरकारों को इस आदेश का पालन करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है।
न्यायालय नें न केवल इस विषय में मानवीय संवेदनशीलता दिखाई, बल्कि राज्य को *’अनाथ बच्चों का पालक पिता’* मानते हुए यह स्पष्ट किया है कि जिन बच्चों के माता-पिता नहीं होते, तो राज्य की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह बच्चों की देखभाल और शिक्षा सुनिश्चित करे।
न्यायालय नें संविधान के अनुच्छेद 51 का भी उल्लेख करते हुए कहा कि यह राज्य का कर्तव्य है कि सभी अनाथ बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो। इसके साथ ही, न्यायालय नें यह भी निर्देश दिया कि राज्य सरकारें यह सर्वेक्षण करें कि कितनें अनाथ बच्चे अभी स्कूल से बाहर हैं और उनकी शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
इस निर्णय से, जब यह पूरी तरह लागू होगा, अनाथ बच्चों को भी उन्हीं सामान्य और प्रतिष्ठित स्कूलों में पढ़ाई करने का अवसर मिलेगा, जैसा कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम की मूल भावना है।
याचिकाकर्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला नें इसे सुप्रीम कोर्ट का अत्यंत दयालु, दूरदर्शी और आवश्यक कदम बताया है, जिससे भारत के लाखों-करोड़ों अनाथ बच्चों को शिक्षा का समान अवसर मिलेगा।
यूनिसेफ (UNICEF) के अनुसार, भारत में 2 करोड़ से अधिक अनाथ बच्चे हैं। परंतु आज तक, इन बच्चों की कोई सरकारी गिनती नहीं की गई है। इस संदर्भ में, सुश्री शुक्ला नें अदालत के समक्ष यह अत्यंत महत्वपूर्ण मांग भी रखी कि देश में चल रही जनगणना में अनाथ बच्चों की गणना अनिवार्य रूप से की जाए।
इस पर, भारत सरकार की ओर से उपस्थित महान्यायवादी नें सकारात्मक उत्तर दिया कि अनाथ बच्चों को जनगणना डेटा में शामिल किया जाना चाहिए और कहा कि वे इस संबंध में आवश्यक निर्देश प्राप्त करेंगे।
सुरेन्द्र कुमार नें यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल न्याय का एक सशक्त उदाहरण है, बल्कि यह सर्वोच्च न्यायालय की विशालता, करुणा और संवैधानिक दृष्टिकोण को भी दर्शाता है — एक ऐसा ऐतिहासिक दिन जब देश की सबसे कमजोर और अनसुनी आवाज़ को देश की सबसे ऊँची अदालत नें न सिर्फ सुना, बल्कि उन्हें सशक्त करने का मार्ग भी प्रशस्त किया।