
फारबिसगंज में एक महीने में चौथा मरणोपरांत नेत्रदान, मानवता और सेवा का नया अध्याय लिख रहे हैं शहरवासी
फारबिसगंज में एक महीने में चौथा मरणोपरांत नेत्रदान, मानवता और सेवा का नया अध्याय लिख रहे हैं शहरवासी
“अंधेरों में उम्मीद की रोशनी: गिन्नीदेवी धनावत का नेत्रदान बना प्रेरणा की मिसाल”
फारबिसगंज में एक महीने में चौथा मरणोपरांत नेत्रदान, मानवता और सेवा का नया अध्याय लिख रहे हैं शहरवासी
फारबिसगंज।
जब आंखें बंद होती हैं, तब भी किसी और के लिए रौशनी बन सकती हैं—इस बात को एक बार फिर सच कर दिखाया फारबिसगंज की पूज्यनीय गिन्नीदेवी धनावत के परिजनों ने। उनके मरणोपरांत नेत्रदान ने सिर्फ एक जरूरतमंद को दृष्टि दी, बल्कि पूरे शहर को एक संवेदनशील संदेश भी दे दिया।
तेरापंथ युवक परिषद और दधीचि देहदान समिति के समर्पण से यह सेवा कार्य कटिहार मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों की टीम द्वारा बीती रात संपन्न हुआ। गिन्नीदेवी धनावत का देहावसान रात 9:30 बजे हुआ और महज कुछ ही घंटों में परिजनों की सहमति के बाद रात 1 बजे नेत्र संग्रह की प्रक्रिया संपन्न कर दी गई।
धार्मिक आस्था और सेवा भाव का अद्भुत संगम
उनके पुत्र हरि धनावत ने बताया कि माताजी सेवा और आध्यात्म की प्रतीक थीं। उनका यह अंतिम कर्म निश्चित रूप से किसी को नई जिंदगी देगा और समाज को एक नई सोच।
तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष आशीष गोलछा ने कहा कि “यह कार्य केवल नेत्रदान नहीं, समाज को नई दृष्टि देने का माध्यम है।”
नेत्रदान सह-संयोजक पंकज नाहटा ने इसे “मौन साधना की सर्वोच्च अभिव्यक्ति” कहा।
जब अश्रु थमते नहीं, तब भी किसी के लिए रोशनी बनने का निर्णय*
इस सेवा कार्य में शामिल सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे कठिन समय में लिया गया यह निर्णय आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनेगा।
फारबिसगंज बना नेत्रदान की जनचेतना का केंद्र
जुलाई माह में यह चौथा नेत्रदान है—स्व. किशनलाल भंसाली, स्व. उमेश चंद्र विश्वास और स्व. मोतीलाल बैद के बाद स्व. गिन्नीदेवी धनावत का नेत्रदान इस क्रम की अगली कड़ी बना।
समाज में बढ़ती यह जागरूकता फारबिसगंज को मानव सेवा की राजधानी बना रही है।